Hanuman Chalisa Paath

Hanuman Sathika

Hanuman Sathika

Shri Hanuman Sathika is a powerful devotional hymn composed of 60 chopais (verses) glorifying Lord Hanuman. It was composed by the great saint-poet Tulsidas, who also penned the famous Hanuman Chalisa of 40 verses.

hanuman Sathika benefits

Reciting the Hanuman Sathika bestows several benefits – it eliminates diseases, debts, enemies and obstacles, and ushers in happiness and success.

For achieving the full benefits, it is recommended to chant the Sathika continuously for 60 days after beginning on a Tuesday. The ideal ritual is to wake up early, perform puja and prayers to Shri Rama first and then Shri Hanuman, before commencing the Sathika chanting.

Some key benefits of regular chanting of Shri Hanuman Sathika:

  1. Destroying negative energies, difficulties and enemies
  2. Granting wisdom, strength and success
  3.  Relieving mental and physical ailments
  4. Fulfilling desires and removing afflictions
  5.  Attaining peace, prosperity and divine grace

By singing the glories of the noble  Hanuman (Anjaneya) through these 60 verses, the devotee can form a deep bond with Him. The powerful chanting of the Sathika invokes His presence and blesses the chanter.

Hanuman Sathika |

श्री हनुमान साठिका 

hanuman sathika in hindi

दोहा

बीर खान पवनसुत, जनत सकल जहान ।

धन्य धन्य अंजनि-तनय, संकर, हर हनुमान ।।

वीर पवनकुमार की कीर्ति का वर्णन करता हूं.

जिसको सारा संसार जानता है। हे आंजनेय! हे

भगवान शंकर के अवतार हनुमानजी! आप धन्य हैं,

धन्य हैं ।

चौपाई

जय जय जय हनुमान अखंडी, जय जय महाबीर बजरंगी।

जय कपीस जय पवन कुमारा, जय जग बन्धन सील-अगारा।

जय उद्योग अमर अविकारी, अरि-मरदन जय जय गिरधारी ।

अंजनि- उदर जन्म तुम लीना, जय-जयकार देवतन कीना । १ ।

हे हनुमानजी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो ।

आपकी गति अबाध है। कोई आपका मार्ग नहीं रोक सकता ।

हे वज्र के समान कठोर अंगों वाले महावीर! आपकी जय हो, जय हो ।

हे कपियों के राजा! आपकी जय हो। हे पवनपुत्र! आपकी जय हो ।

हे सारे संसार के वंदनीय! हे गुणों के भंडार ! आपकी जय हो ।

हे कर्त्तव्य-प्रवीण, हे देवता, हे अविकारी! आपकी हो।

हे शत्रुओं का नाश करने वाले ! आपकी जय हो ।

हे द्रोणाचल को उठानवाले! आपकी जय हो।

आपने माता अंजनी के गर्भ से जन्म लिया।

तब देवताओं ने जय-जयकार की ।

 Hanuman Sathika

बाजी दुंदुभि गगन गंभीरा, सुर-मन हरष, असुर-मन पीरा ।

कपि के डर, गढ़ लंक सकाने, छूटे बंदी देव, सब जाने।

रिषय समूह निकट चलि आये, पवन तनय के पद सिर नाये ।

बार-बार अस्तुति करि नाना, निरमल नाम धरा हनुमाना । २ ।

आकाश में नगाड़े बजे, देवता मन में हर्षित हुए,

असुरों के मन में पीड़ा हुई। आपके डर से लंका के किले में रहने वाले भयभीत हो गये।

आपने देवताओं को कारागार से छुड़ाया । यह सब जानते हैं ।

ऋषियों के समूह आपके पास आए और हे पवनकुमार!

आपके चरणों में सिर नवाये और बहुत प्रकार से बार-बार स्तुति की

और आपका पावन नाम ‘हनुमान’ रखा गया।

सकल रिषय मिलि अस मत ठाना, दीन बताय लाल फल खाना ।

सुनत बचन कपि अति हरषाने, रबि रथ गहे लाल फल जाने।

रथ समेत रवि कीन अहारा, सोर भयउ तहँ अति भयकारा ।

बिनु तमारि सुर-मुनि अकुलाने, तब कपीस कै अस्तुति ठाने । ३ ।

सब ऋषियों ने सर्वसम्मति से आपको लाल फल खाने की

प्रेरणा दी जिसे सुनकर आप बहुत हर्षित हुए और

सूर्य को लाल फल समझ कर रथ समेत पकड़
लिया। आपने सूर्य को रथ सहित मुंह में रख लिया।

तब अत्यन्त भय छा गया और हा-हाकार मच गया।

सूर्य के बिना सब देवता और मुनि व्याकुल होकर आपकी स्तुति करने लगे ।

सकल लोक वृत्तांत सुनावा, चतुरानन तब रबि ढ़ंगिलावा ।

कहा बहोरि, सुनहु बल-सीला, रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ।

तब तुम तिनकर करब सहाई, अबहिं रहहु कानन – महं जाई ।

अस कहि बिधि निज लोक सिधारा, मिले सखा-सग पवन कुमारा । ४ ।

सारे संसार की दशा सुनाकर ब्रह्माजी ने सूर्य को मुक्त करने के लिए आपको मनाया। तब आपसे विनती की, हे महावीर ! सुनिये। श्रीरामचन्द्र जी महान लीला करेंगे तब आप उनकी सहायता करियेगा । अभी तो आप वन में जाकर रहिये। यह कहकर ब्रह्माजी अपने लोक को चले गये और हे पवनकुमार! आप अपने सखाओं में मिल गए।

खेलहिं खेल महातरु तोरी, गली करत परबत- मैं फोरी।

जेहि गिरि चरन देत कपिराई, बल सो चमकि रसातल जाई ।

कपि सुग्रीव बालि की त्रासा, निरभउ रहेउ राम मग आसा ।

मिले राम लै पवन कुमारा, अति आनन्द समीर-दुलारा । ५ ।

खेल-खेल में आपने बड़े-बड़े वृक्ष तोड़ डाले और

पर्वतों को फोड़-फोड़ कर मार्ग बनाया। हे हनुमानजी!

जिस पर्वत पर आपने चरण रखे वह प्रकाशमान

होकर रसातल में चला गया। सुग्रीवजी बाली से डरे

हुए । श्रीरामचन्द्र की प्रतीक्षा करते हुए निर्भय रहते

थे । हे पवनकुमार! आपने लाकर उन्हें श्रीरामचन्द्र

जी से मिला दिया । और हे पवननंदन! आपको

इसमें बहुत आनन्द हुआ ।

मनि मुंदरी रघुपति-सौं पाई, सीता खोज चले कपिराई ।

सत योजन जननिधि बिस्तारा, अगम अपार देव-मुनि हारा।

बिन श्रम गोखुर सरिस कपीसा, नांधि गयो कपि कहि जगदीसा ।

सीता-चरन सीस तिन नायौ, अजर अमर की आसिष पायो । ६ ।

हे हनुमानजी! श्रीराघवेन्द्र से आपको मणिजड़ति अंगूठी मिली जिसे लेकर आप श्रीसातीजी की खोज करने चले । हे हनुमानजी! सौ योजना का विशाल, अथाह, समुद्र जिसे देवता और मुनि भी पार नहीं कर सकते थे, उसे आपने ‘जय श्रीराम’ कहकर बिना थके हुए सहज ही लाँघ लिया जैसे गऊ के खुर को । और सीताजी के पास पहुँचकर उनके चरण-कमल में सिर नवाया जिस पर सीताजी से आपने आशीर्वाद पाया |

अजर अमर गुन निधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ।

रहे दनुज उपवन रखवारी, एक-तें एक महा भट भारी ।

तिन्हें मारि, उपवन करि खीसा, दह्यो लंक कांप्यौ दससीसा ।

सिया बोध दे पुनि फिरि आयो, रामचन्द्र के पद सिर नायो

मेरु बिसाल आनि पल मांही, बांध्यौ सिंधु निमिष इक मांहीं । ७।

एक-से-एक भयानक योद्ध, राक्षस वाटिका की रखवाली करते थे। उन्हें आपने मारा, उपवन को नष्ट किया, लंका को जलाया जिससे रावण भयभीत होकर कांप गया। आपने सीताजी को धीरज दिया और लौट कर श्रीरामचन्द्र के चरणों में सिर नवाया । बड़े-बड़े पर्वतों को लाकर आपने पलभर ‘समुद्र परपुल बंधाया ।

भये फन्नीस सक्ति बस जबहीं, राम बिलाप कीन बहु तबहीं।

भवन समेत सुखेनहिं लाये, भूरि सजीवनि कहं तब धाये ।

भग-महं कालनेमि कह मारा, अमित सुभट निसिचर संहारा।

आनि सजीवन सैल-समता, धर दीन्ह्यौ जहं कृपानिकेता । ८ ।

जब लक्ष्मणजी को शक्ति लगी तब श्रीरामचन्द्र ने बहुत विलाप किया। आप सुखेन वैद्य को भवन समेत ही उठा लाए। आप बड़े वेग से संजीवनी बूटी लेने गए। रास्ते में कालनेमि को मारा और असंख्य योद्धा-निशाचरों को नष्ट किया। आपने पर्वत सहित संजीवनी को लाकर करुणानिधान श्रीरामचन्द्र के पास रख दिया ।

फनपति-केर सोक हरि लीन्ह्यो, बरषि सुमन, सुर जय-जय कीन्ह्यौ ।

अहिरावन हरि अनुज समेता, लै गो जहाँ पाताल -निकेता |

तहाँ रहै देवी अस्थाना, दीन्ह चहै बलि काढ़ि कृपाना ।

पवन तनय तहं कीन्ह गोहारी, कटक-समेत निसाचर मारी । ९ ।

आपने लक्ष्मणजी के संकट को दूर कर दिया । देवताओं ने पुष्प वर्षा करके जय-जयकार की। अहिरावण श्रीराम-लक्ष्मण को पाताल में ले गया। वहां देवीजी के स्थान पर उनकी बलि देने के लिए तलवार निकाल ली। उसी समय हे हनुमानजी! आपने वहां पहुंच कर ललकारा और उस राक्षस को सेना समेत मार डाला ।

रिच्छ कीसपति जहां बहारी, राम-लखन कीन्हेउ यक ठौरी ।

सब देवन- कै बंदि छोड़ाई, सोई कीरति नारद मुनि गाई ।

अच्छ कुमार दनुज बलवाना, स्वामि केतु कहं सब जग जाना।

कुम्भकर्ण रावन-कै भाई, ताहि निपात कीन्ह कपिराई । १० ।

जहां जामवंत और सुग्रीव थे, वहां आप श्रीराम- लक्ष्मण को लौटा लाए। आपने सब देवताओं को बंधन से छुड़ा दिया। नारद मुनि ने आपका यशगान किया। अक्षकुमार राक्षस बहुत बलवान था । स्वामी केतु को सब संसार जानता है। रावण का भाई कुम्भकरण था । हे हनुमानजी! इन सबका आपने विनाश किया।

मेघनाथ संग्रामहिं मारा, पवन तनय सम को बरियारा ।

मुरहा तनय नरांतक नामा, पल-महं ताहि हता हनुमाना ।

जह लगि नाम दनुज कर पावा, संभु-तनय तह मारि खसावा ।

जय मारुत-सुत जन अनुकूला, नाम कृसान सोक सम तूला । ११ ।

आपने युद्ध में मेघनाद को पछाड़ा । हे पवन कुमार! आपके समान कौन बलवान है? मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले नारान्तक नामक रावण के पुत्र को हे हनुमानजी! आपने क्षण भर में परास्त कर दिया । जहां-जहां आपने राक्षसों को पाया, हे शिव अवतार ! आपने उन्हें मारकर ढकेल दिया । हे पवनपुत्र ! आपकी जय हो । आप सेवकों के कार्य-सिद्धि में सहायक हुए। उनके शोक रूपी रुई को जलाने में आपका नाम अग्नि के समान है।

जेहि जीवन-कहं सकंट होई, रवि- समान तम-संकट खोई ।

बंदि परे सुमिरै हनुमाना, गदा-चक्र लै चलु बलवाना।

जम- कहं मारि बाम दिसि दीन्हा, मृत्युहि बांधि हाल बहु कीन्हा ।

सो भुजबल का कीन कृपाला, अछत तुम्हार मोरि यह हाला । १२ ।

जिसके जीवन में कोई संकट हो, आप उसे वैसे ही दूर कर देते हैं जैसे अंधेरे को सूर्य । हे हनुमानजी! बंदी होने पर जो आपका स्मरण करता है उसकी रक्षा करने के लिए आप गदा और चक्र लेकर चल पड़ते

हैं। यमराज को भी ऊपर दिशा में फेंक देते हैं और मुत्यु को भी बांधकर उनकी बुरी दशा करते हैं। हे कृपासागर! आपकी वह शारीरिक शक्ति कहां गयी जो आपके रहते मेरी यह दशा हो रही है ।

आरति – हरन नाम हनुमाना, सारद-सुरपति कीन्ह बखाना ।

रहै न संकट, एक रती-को, ध्यान धरैं हनुमान जती को ।

धावहु देखि दीनता मोरी, मेटहु बंदि, कहहु कर जोरी।

कपिपति बेगि अनुग्रह करहु, आतुर आइ दास-दूख हरहू । १३ ।

हे हनुमानजी! आपका नाम संकटमोचन है। श्री सरस्वती जी और देवराज इन्द्र ऐसा वर्णन करते हैं कि जो व्यक्ति ब्रह्मचारी हनुमानजी आपका ध्यान धरता है उसका एक रत्ती के बराबर भी संकट नहीं रह सकता। आप मेरी दीनता देखकर अति तीव्र गति से आइये और मेरे बंधनों को काट दीजिए। मैं हाथ जोड़कर विनती करता हूं। हे हनुमानजी! शीघ्र कृपा कीजिये। मुझ दास का दुःख दूर करने के लिए आप उतावले होकर आइये ।

राम-सपथ मैं तुमहिं धरावा, जो न गुहार लागि सिव-जावा ।

बिरद तुम्हारि सकल जग जाना, भव-भय-भंजन तुम हनुमाना।

यहि बंधन-करि के तिक बाता, नाम तुम्हार जगत-सुख दाता ।

करहु कृपा जय जय जग-स्वामी, बार अनेक नमामि नमामी । १४ ।

हे शिव अवतार! यदि आप पुकार सुनकर न आओ तो मैं आपको श्रीराम की शपथ देता हूं । आपका यश सारा संसार जानता है। हे हनुमानजी! आप संसार में बार-बार जन्म लेने के भय को भी दूर कर देते हैं फिर मेरा यह बंधन कितना-सा है। आपका जगत्-सुखदाता नाम है। हे जग के स्वामी! आपकी जय हो। आप कृपा कीजिये । मैं अनेक बार आपको नमस्कार करता हूं ।

भौम बार करि होम बिधाना, धूप-दीप नैवेद्य सजाना ।

मंगल-दायक को लौ लावै, सुर नर मुनि तुरतहिं फल पावै ।

जयति जयति जय जय जग-स्वामी, समरथ सब जग अन्तर-जामी ।

अंजनि-तनय नाम हनुमाना, सो तुलसी कहं कृपानिधाना । १५ ।

जो कोई मंगलवार को विधिपूर्वक हवन करे, धूप-दीप नैवेद्य समर्पित करे और मंगलकारक श्रीहनुमानजी में लगन लगावे, वह चाहे देवता हो या मनुष्य हो या मुनि हो, तुरन्त ही उसका फल पायेगा । हे जगत् के स्वामी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो, जय हो । हे हनुमानजी! आप समर्थ विश्वात्मा, मन की बात जानने वाले, ‘आंजनेय’ आपका नाम है। । आप तुलसी के कृपानिधान हैं ।

दोहा

जय कपीस सुग्रीव तुम, जय अंगद जय हनुमान ।

राम-लखन सीता सहित, सदा करो कल्यान ।।

जो यह साठिक पढ़िइ नित, तुलसी कहैं बिचारि ।

पड़ै न संकट ताहि-कौ, साखी हैं त्रिपुरारि ।।

सुग्रीवजी की जय, अंगदजी की जय, हनुमानजी की जय, श्रीराम लक्ष्मणजी, सीताजी सहित सदा कल्याण कीजिये । तुलसीदास की यह घोषणा है कि जो इस हनुमान साठिका को नित्य पढ़ेगा वह कभी संकट में नहीं पड़ेगा। श्री शिवजी साक्षी हैं ।

सवैया

आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो बिनती मम भारी ।

अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ।।

जाम्बवान् सुग्रीव पवन सुत दिविद मयंद महाभटभारी ।

दुख-दोष हरो तुलसी जन को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ।।

(श्री तुलसीदासजी कहते हैं) हे हनुमानजी! मैं भारी विपत्ति में पड़कर आपको पुकार रहा हूं। आप मेरी विनय सुनिये। अंगद, नल, नील, महादेव, राजा बलि, भगवान राम (देव) बलराल, शूरवीर, जाम्वान्, सुग्रीव, पवनपुत्र हनुमान, द्विविद और मयन्द-इन बारह वीरों की मैं बलिहारी (न्यौछावर) हूँ; भक्त के दुःख और दोष को दूर कीजिये ।


 

श्री हनुमान साठिका एक शक्तिशाली भक्ति भजन है जिसमें भगवान हनुमान की महिमा का 60 चौपाइयाँ (छंद) शामिल हैं। इसकी रचना महान संत-कवि तुलसीदास ने की थी, जिन्होंने 40 छंदों की प्रसिद्ध हनुमान चालीसा भी लिखी थी।

हनुमान साठिका का पाठ करने से कई लाभ मिलते हैं – यह रोग, ऋण, शत्रु और बाधाओं को दूर करता है और खुशी और सफलता की प्राप्ति कराता है।

पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए, मंगलवार को शुरू करने के बाद 60 दिनों तक लगातार साठिका का जाप करने की सलाह दी जाती है। आदर्श अनुष्ठान यह है कि साठिका जप शुरू करने से पहले जल्दी उठें, पहले श्री राम और फिर श्री हनुमान की पूजा और प्रार्थना करें।

श्री हनुमान साठिका के नियमित जाप के कुछ प्रमुख लाभ:

  1. नकारात्मक ऊर्जाओं, कठिनाइयों और शत्रुओं का नाश
  2. ज्ञान, शक्ति और सफलता प्रदान करना
  3. मानसिक और शारीरिक रोगों से राहत
  4. कामनाओं की पूर्ति और कष्टों का निवारण
  5. शांति, समृद्धि और दैवीय कृपा प्राप्त करना

इन 60 छंदों के माध्यम से महान वानर-देवता हनुमान की महिमा गाकर, भक्त उनके साथ एक गहरा बंधन बना सकता है। साठिका का शक्तिशाली जप उनकी उपस्थिति का आह्वान करता है और जपकर्ता को आशीर्वाद देता है।

 

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